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2012 में आई ‘Son of Sardaar’ की यादें शायद ही किसी के दिमाग में ताजा हों। उस फिल्म का मजा उस समय के हिसाब से ठीक-ठाक था, लेकिन उसकी कहानी और हास्य कुछ खास नहीं था। अब 13 साल बाद, इसका सीक्वल ‘Son of Sardaar 2’ लेकर आए हैं अजय देवगन, जो एक बार फिर सरदार जस्सी रंधावा के किरदार में नजर आते हैं। लेकिन क्या यह सीक्वल पहली फिल्म से बेहतर है? आइए, इस समीक्षा में जानते हैं।
कहानी: उलझन भरी हंसी की कोशिश
‘Son of Sardaar 2’ की कहानी जस्सी रंधावा (अजय देवगन) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने प्यारे गांव और मां (डॉली आहलूवालिया) को छोड़कर स्कॉटलैंड पहुंचता है। यहां उसकी जिंदगी में कई ट्विस्ट आते हैं। उसकी पत्नी (नीरू बाजवा) उसे धोखा देती है, और वह खुद को एक नई प्रेम कहानी में उलझा हुआ पाता है। इस बार उसका प्यार है राबिया (मृणाल ठाकुर), जो एक डांसर है और, हैरानी की बात, पाकिस्तानी है। कहानी में भारत-पाकिस्तान का हल्का-फुल्का मजाक चलता रहता है, जो कभी हंसाता है तो कभी बोर करता है।
राबिया की छोटी बेटी (रोशनी वालिया) एक ऐसे लड़के से प्यार करती है, जिसके अमीर पिता (रवि किशन) पाकिस्तानियों से नफरत करते हैं। इसके अलावा, चंकी पांडे और कुब्रा सैत जैसे किरदार डांस ट्रूप का हिस्सा हैं, जो कहानी में और उलझन जोड़ते हैं। कहानी में 1997 की फिल्म ‘Border’ के कुछ दृश्यों को मजाक के तौर पर दोहराया गया है, और एक टैंक तक को कहानी में घसीटा गया है। लेकिन ये सारी चीजें बिखरी-बिखरी सी लगती हैं, और दर्शकों को यह समझने में मुश्किल होती है कि आखिर फिल्म कहना क्या चाहती है।
एक्टिंग: दीपक डोबरियाल की धमाकेदार मौजूदगी
अजय देवगन का किरदार जस्सी रंधावा भोला-भाला और प्यारा है, लेकिन उनके पास हंसी पैदा करने वाले डायलॉग्स की कमी साफ दिखती है। अजय की उम्र और मृणाल ठाकुर की जवानी के बीच का फासला भी थोड़ा खटकता है। मृणाल ठाकुर इस फिल्म में अपनी कॉमेडी टाइमिंग से चौंकाती हैं। उनका किरदार राबिया न सिर्फ खूबसूरत है, बल्कि हल्के-फुल्के अंदाज में दर्शकों का ध्यान खींचता है। लेकिन उनकी और अजय की जोड़ी में वह जादू नहीं दिखता, जो एक रोमांटिक-कॉमेडी में चाहिए।
अब बात करते हैं फिल्म की असली जान की, यानी दीपक डोबरियाल की। दीपक एक ट्रांस किरदार में नजर आते हैं, और उनकी परफॉर्मेंस इतनी शानदार है कि वे हर सीन में छा जाते हैं। उनका अंदाज, उनकी टाइमिंग, और उनका बिंदास रवैया फिल्म को एक अलग स्तर पर ले जाता है। अगर स्क्रिप्ट ने उनके किरदार को और मौका दिया होता, तो शायद यह फिल्म कहीं बेहतर हो सकती थी।
रवि किशन अपने किरदार में ठीक-ठाक हैं, लेकिन उनका रोल ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ता। कुब्रा सैत और चंकी पांडे जैसे सितारों को कहानी में ठूंसा गया है, लेकिन उनके किरदारों का कोई खास योगदान नहीं दिखता। विन्दु सिंह और दिवंगत मुकुल देव अपने पुराने किरदारों को दोहराते हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी भी कहानी को आगे नहीं बढ़ाती। शरत सक्सेना और संजय मिश्रा जैसे दिग्गज कलाकारों को भी बेकार के सीन दिए गए हैं, जो निराश करते हैं।
निर्देशन और स्क्रिप्ट: कहां चूक गए?
निर्देशक विजय कुमार अरोड़ा ने इस फिल्म को एक हल्की-फुल्की कॉमेडी बनाने की कोशिश की है, लेकिन स्क्रिप्ट का बिखराव उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बनकर सामने आता है। कहानी में कई किरदार और कई ट्रैक हैं, लेकिन कोई भी ठीक से आपस में नहीं जुड़ता। भारत-पाकिस्तान वाला मजाक कुछ देर हंसाता है, लेकिन बार-बार दोहराए जाने पर बोरियत पैदा करता है। कुछ दृश्यों में नस्लवाद को मजाक के तौर पर दिखाया गया है, जो आज के समय में थोड़ा असहज करता है।
फिल्म की लंबाई भी एक समस्या है। अगर स्क्रिप्ट को और कसा गया होता और बेकार के सीन हटाए गए होते, तो शायद यह फिल्म ज्यादा मजेदार हो सकती थी। हास्य के नाम पर पुराने जोक्स और घिसे-पिटे डायलॉग्स का इस्तेमाल किया गया है, जो दर्शकों को बांधने में नाकाम रहते हैं।
तकनीकी पक्ष: औसत से ऊपर
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी स्कॉटलैंड की खूबसूरती को अच्छे से पकड़ती है। बैकग्राउंड म्यूजिक और गाने ठीक-ठाक हैं, लेकिन कोई भी गाना ऐसा नहीं है जो दर्शकों के दिमाग में लंबे समय तक रहे। एडिटिंग में सुधार की गुंजाइश थी, क्योंकि कई सीन अनावश्यक रूप से लंबे खिंचते हैं।
क्या अच्छा, क्या बुरा?
अच्छा:
- दीपक डोबरियाल की शानदार परफॉर्मेंस, जो फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है।
- मृणाल ठाकुर की अप्रत्याशित कॉमेडी टाइमिंग।
- स्कॉटलैंड की खूबसूरत लोकेशन्स।
बुरा:
- कमजोर और बिखरी हुई स्क्रिप्ट।
- अजय देवगन और मृणाल ठाकुर की जोड़ी में केमिस्ट्री की कमी।
- पुराने और घिसे-पिटे जोक्स।
- अनावश्यक रूप से लंबी कहानी।
‘Son of Sardaar 2’ एक ऐसी फिल्म है जो हंसाने की पूरी कोशिश तो करती है, लेकिन अपनी कमजोर स्क्रिप्ट और बिखरे हुए कथानक की वजह से दर्शकों को पूरी तरह बांध नहीं पाती। दीपक डोबरियाल की शानदार अदाकारी और मृणाल ठाकुर की ताजगी इस फिल्म को थोड़ा संभालती है, लेकिन अजय देवगन जैसे बड़े सितारे को और बेहतर डायलॉग्स और उम्र के हिसाब से सही जोड़ी की जरूरत थी। अगर आप दीपक डोबरियाल के फैन हैं या हल्की-फुल्की कॉमेडी देखने का मन है, तो यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है। लेकिन अगर आप कुछ नया और ताजा चाहते हैं, तो शायद यह फिल्म आपको निराश करे।
डिस्क्लेमर: यह समीक्षा व्यक्तिगत राय पर आधारित है और इसका उद्देश्य केवल मनोरंजन और जानकारी प्रदान करना है। फिल्म देखने का निर्णय दर्शकों का व्यक्तिगत है। इस समीक्षा में व्यक्त विचार लेखक के हैं और जरूरी नहीं कि ये सभी दर्शकों की राय से मेल खाएं।